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Jad-chetan ka sangam hai…

आगरा(arohanlive.com) मानव का अस्तित्व क्या है? उसका रूप-रंग क्या है? जीवन में उसका क्या महत्व रहता है। मानव की तुलना विविध सुंगध के फूल से करते हुये उसकी हर एक स्थिति को बयां किया है साहित्यकार, कवि एवं लेखक श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल ने अपनी रचना- जड़-चेतन का संगम है में। इस कविता के सोच की गहराइयों में जाकर चिंतन करने की जरूरत है।

जड़-चेतन का संगम है…

 

मानव फूल है जड़-चेतन का,

यह संगम है मिट्टी बुद्धि का,

यह फूल है विविध सुगंध का,

सौंदर्य अनेक  रूप रंग का,

धरा बगिया है सहस्त्रों फूलों की।

मानव ज्योति दिये की,

कुछ धुआं है, कुछ रोशन है,

कुछ जड़ता है, कुछ चेतन है,

कहीं शैतानियत का चेहरा है,

कहीं देवों की ज्योति है।

मानव धरती की शोभा है,

अनेक फूलों का मेला है,

यह प्रदर्शनी फल-फूलों की,

भंवरी-भंवर का एक जोड़ा है,

विरह मिलन का एक जोड़ा है।

कुछ फूल यहां पूरे खिलते हैं,

कुछ खिलने से पहिले ही मुरझाते,

कोई यहां देवों पर चढ़ते,

कोई शैतां के पैरों दबते,

कुछ रोते हैं, कुछ हंसते हैं।

दिव्य फूल बन जाते कुछ,

ऊंचे आदर्शों पर ही चढ़ते,

कहीं और नहीं वे गिरते,

विविध तापों में वे जलते हैं,

पर आत्माराम को भी भजते हैं।।

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