आगरा (arohanlive.com) । साहित्यकार, कवि एवं विचारक मेरे पिता श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल हमेशा अनूठे रहे, उनकी बहुमुखी प्रतिभा का वर्णन करना शब्दों के माध्यम से तो संभव नहीं है लेकिन फादर्स डे पर फिर अपनी एक कविता के माध्यम से उन्हें स्मरण करने का प्रयास किया है।
मेरे गुरु हैं, मेरे पापा
(पवित्रा अग्रवाल)
मेरे गुरु हैं, मेरे पापा,
मेरे आराध्य हैं, मेरे पापा,
शत-शत नमन करूं मैं आपको,
इस जीवन के सार हैं पापा।
आप बिन अस्तित्व कुछ नहीं मेरा,
मुझे सबकुछ दिया आपने,
ज्ञान, बुद्धि, जन्म और आत्मबल,
शक्ति के आधार आप हो पापा।
मैं भाग्यशाली हूं आपको पाकर,
कैसे उतारूं ऋण मैं आपका,
आपके त्याग-बलिदान को कैसे भूलूं,
शक्ति-भक्ति के आधार आप हो पापा।
आपके सिखाए मार्ग पर चलना है मेरा लक्ष्य,
अपने को संपूर्ण बनाना,
व्यापकता- साकारा जीवन शैली को अपनाना,
नाकारा-संकुचित सोचों से मुक्ति पाना।
मेरे हर कर्म में आप हो पापा,
मेरे आराध्य हैं मेरे पापा,
सबसे प्यारे हैं मेरे पापा,
सबसे निराले हैं मेरे पापा।
Add comment