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श्रीविश्‍वेश्‍वर दयाल अग्रवाल

प्रेरणास्रोत

पृथ्वी पर कुछ ऐसी महान विभूतियां जन्म लेती हैं, जो बिना किसी मोह-माया और स्वार्थ के बिना निष्काम कर्म में लगे रहते है और इसे अपने जीवन में चरितार्थ कर दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे ही महापुरुष एवं योगी-संत श्रीविश्‍वेश्‍वर दयाल अग्रवाल रहे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, आकर्षक व्यक्तित्व, सौम्य स्वाभाव और चेहरे पर झलकती दिव्यता से सभी श्रीविश्‍वेश्‍वर दयाल अग्रवाल से सम्मोहित हो जाते थे। वह एक महान विचारक, साहित्यकार, कवि होने के साथ जीवन पर्यन्त श्रीअरविंद के सिद्धांतों पर चलते रहे। आगरा में बौहरे श्री रामसरन अग्रवाल एवं माता श्रीमती जशोदा देवी के घर 25 अप्रैल 1935 को जन्मे श्रीविश्‍वेश्‍वर दयाल अग्रवाल का विवाह दिल्ली निवासी शकुंतला देवी के साथ हुआ।

श्री दयाल अपनी शिक्षा अग्रवाल इंटर कालेज व सेंटजोंस कॉलेज से पूरी करने के बाद अमेरिका के कैलीफोर्निया स्थित स्थित वेस्टर्न यूनिवर्सिटी गए, जहां मास्टर डिग्री हासिल की और पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया। इसके बाद वह अपने देश लौट आए।

अमेरिका से आने के पश्चात वह पूरी तरह से साहित्य सर्जन में जुट गए। पांच दशक तक अनवरत रूप से वह लेख, डायरी, मुक्तक, कविताएं, राष्ट्र भक्ति, श्रृंगार, व्यंग्य समेत सभी विषयों पर लिखा। इनका लिखा साहित्य कालजयी है, जो तात्कालिक समय की जरूरत थी और वर्तमान संदर्भ में और ज्यादा प्रासंगिक है। साहित्य को उन्होंने कभी धनोपार्जन का जरिया नहीं बनाया। वह प्रचार-प्रसार से कोसों दूर रहे। उन्होंने सर्वप्रथम ब्रज प्रदेश की मांग को उठाया और ब्रज प्रदेश निर्माण संघ के नाम से राजनीतिक दल का गठन भी किया, जिसके आजीवन संस्थापक अध्यक्ष रहे यह राजनीतिक पार्टी आज भी भारत निर्वाचन आयोग की डी लिस्ट में 34वें नंबर पर है। लेकिन राजनीति से उनका मोह जल्द ही भंग हो गया और वह फिर साहित्य साधना में जुट गए।

श्रीविश्‍वेश्‍वर दयाल अग्रवाल की दो काव्य संग्रह आरोहण और सत्यदीप का प्रकाशन हुआ है, जिसमें सत्यदीप कोलकाता की राजाराम लाइब्रेरी से संबद्ध है। श्री दयाल की राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत गीतों से सजी एक ऑडियो एलबम मेरा भारत भी जारी हुई है, जिसके गानों को कई स्थानों पर सराहा गया है। इस महान आत्मा ने 26 जनवरी 2019 की प्रातः बेला में अपने पार्थिव देह को त्याग कर  दिव्यलोक में विराजमान हो गए।

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