आगरा (arohanlive.com) । ब्रज 84 कोस की इस समय परिक्रमा की जा रही है। प्रख्यात साहित्यकार, कवि एवं विचारक श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल ने अपनी कविता चलौ ब्रज में भक्ति की ऐसी ज्योति जलाई है, जिससे मन पुलकित हो उठता है। साथ में ब्रज की महिमा।
(श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल)
चलौ ब्रज
ज्ञान-कर्म चलौ ब्रज,
श्री राधा गोविन्द के गुण गांवें,
स्नान करें श्री राधा कुण्ड में,
माया-मोह के विकार मिटावें,
प्रेम गंगा में बहें प्रतिपल,
श्री वृन्दावन बस जावें।।
मन इन्द्रिय चलौ ब्रज,
श्री राधा –कृष्ण ध्यान लगावें,
त्याग करें रस-रंग, रूप यौवन,
भक्ति की ज्योति जलावें,
बागडोर दें श्री राधे स्वामिनी कूं,
जीवन सफल बनावें।
काम-अहम् चलौ ब्रज,
सब भटकावों से मुक्ति पावें,
रसपान करें श्री राधा-माधव छवि कौ,
मृग तृष्णा से बच जायें,
पीछे छोड़ें माया जग कौ,
आगे बढ़ जावैं।
प्राण-चेतन चलौ ब्रज,
ब्रज मंडल में रम जावैं,
डुबकी लगावें भक्ति सागर में,
प्रेम को मिलन आधार बनावें,
सब मिल घूमें भक्ति के,
माया जग से मुक्ति पावैं।
ज्ञान-कर्म चलौ ब्रज…
श्री दयाल की कविता में ब्रज की भक्ति महिमा
🌼 व्रज 84 कोस – 66 अरब तीर्थ 🌼
वृंदावन, मथुरा, गौकुल, नंदगांव, बरसाना, गोवर्धन सहित वें सभी जगह जहाँ श्री कृष्ण जी का बचपन बीता और आज भी जहाँ उनको महसूस किया जा सकता है, जैसे कि सांकोर आदि में वह सब बृज 84 कोस का हिस्सा है।
श्रीकृष्ण और राधा रानी की लीला भूमि
वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का बहुत महत्व है, ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि है। इस परिक्रमा के बारे में वारह पुराण में बताया गया है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं।
कृष्ण की लीलाओं से जुड़े हैं 1100 सरोवरें
ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा मथुरा के अलावा राजस्थान और हरियाणा के होडल जिले के गांवों से होकर गुजरती है। करीब 268 किलोमीटर परिक्रमा मार्ग में परिक्रमार्थियों के विश्राम के लिए 25 पड़ावस्थल हैं। इस पूरी परिक्रमा में करीब 1300 के आसपास गांव पड़ते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवरें, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं। बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं, जिनके दर्शन शायद पहले ही कभी किए हों। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है।
इस समय निकलती है परिक्रमा
ज्यादातर यात्राएं चैत्र, बैसाख मास में ही होती है चतुर्मास या पुरुषोत्तम मास में नहीं। परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद् काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं। शैव और वैष्णवों में परिक्रमा के अलग-अलग समय है।
क्या है महत्व?
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा और नंदबाबा के दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था। इस परिक्रमा के करने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। साथ ही जो व्यक्ति इस परिक्रमा को लगाता है, उस व्यक्ति को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गर्ग संहिता में कहा गया है कि यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से 4 धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं, इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां मौजूद हो गए। 84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है। इसके अलावा गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन यहां श्रद्धालुओं को होते हैं। तत्पश्चात यशोदा मैया व नन्दबाबाने उनकी परिक्रमा की। तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है।
यात्रा 7 दिनों में पूरी होती है, ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा में आने वाले स्थान इस प्रकार है।
मथुरा से
🌼1. मधुवन
🌼2. तालवन
🌼3. कुमुदवन
🌼4. शांतनु कुण्ड
🌼5. सतोहा
🌼6. बहुलावन
🌼7. राधा-कृष्ण कुण्ड
🌼8. गोवर्धन
🌼9. काम्यक वन
🌼10. संच्दर सरोवर
🌼11. जतीपुरा
🌼12. डीग का लक्ष्मण मंदिर
🌼13. साक्षी गोपाल मंदिर
🌼14. जल महल
🌼15. कमोद वन
🌼16. चरन पहाड़ी कुण्ड
🌼17. काम्यवन
🌼18. बरसाना
🌼19. नंदगांव
🌼20. जावट
🌼21. कोकिलावन
🌼22. कोसी
🌼23. शेरगढ
🌼24. चीर घाट
🌼25. नौहझील
🌼26. श्री भद्रवन
🌼27. भांडीरवन
🌼28. बेलवन
🌼29. राया वन
🌼30. गोपाल कुण्ड
🌼 31. कबीर कुण्ड
🌼32. भोयी कुण्ड
🌼33. ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर
🌼34. दाऊजी
🌼35. महावन
🌼36. ब्रह्मांड घाट
🌼37. चिंताहरण महादेव
🌼 38. गोकुल
🌼39. लोहवन
🌼 40. वृन्दावन के मार्ग में आने वाले तमाम पौराणिक स्थल हैं।
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