आगरा, Arohanlive.com । ब्रज होली के रंग-गुलाल से सराबोर होने लगा है। होली के गीत ऐसे में मस्ती के रंग घोलने के साथ आनन्दित करते है। ऐसी ही प्रेम-सौहार्द्र का संदेश देने वाली श्रीविश्ववेश्वर दयाल अग्रवाल की पुस्तक सत्यदीप की होली की रचना का आनन्द लीजिए।
रचनाकार श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल।
होली छबीली आई रे
होली छबीली आई रे,
सगजन स्वागत कूं आवो,
भरि-भरि लावो, प्रेम पिचकारी,
जन-जन पर रंग डारौ,
ले आवौ यौवन वसंत कूं,
प्रेम-रस, सबहु पिलावौ ।
आवौ ब्रजबाला मिल-जुल,
ब्रज नंदन संग होरी खेलौ,
पीयो रस भरि-भरि के,
बैरिन केहु सग खेलौ,
ना चूको खेलन होरी,
पूरन मासी, सब मिल खेलो।।
होरी छबीली आई रे…
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