(पवित्रा अग्रवाल)
जीवन की स्वतंत्रता के मूल्यांकन में राजनैतिक स्वतंत्रता सिर्फ समुद्री धरातल के समान ही है। इसका शिखर तो मोक्ष ही है- आत्मविसर्जन स्थान है राजनैतिक। 15 अगस्त स्वतंत्रता का मुख्य दिन-वार- पर राजनैतिक स्वतंत्रता का प्रकाश नैतिक, भौतिक आत्मप्रकाश के बिना सिर्फ धरातल धुंधला ही होता है। सूर्य की पहली किरण ही घोषणा है। दुपहरी का चमकता सूर्य नहीं। यह दिन एक शुभ दिन की स्वर्ण स्मृति है। दूसरी ओर प्रेरणा लेने का और स्वतंत्रता के शिखर की ओर बैठने का है।
किधर की ओर बढ़ रहे हैं हम
आज-कल राजनीतिक रूप से स्वतंत्र भारत, कितनी सच्ची भावना का है यह एक बड़ा प्रश्नचिह्न है। यह विचार इस देश को प्यार करने वालों की चिंता का विषय है। आज हम किधर की ओर बढ़ रहे हैं, आज हमारी क्या दिशा है।
इस पुण्य दिवस की भावना और आत्मा श्री अरविंद के स्मरण से मिला जीवन, जिनका 15 अगस्त को जन्मदिवस भी है। यही दिव्य पुरुष पहले क्रांतिकारी बनकर अंग्रेजों से लड़ा। बाद में पूर्ण स्वतंत्रता के लिए ईश्वर आदेश पर राजनैतिक क्रांतिकारी जीवन छोड़कर आध्यात्मिक तपस्या के लिए पांडुचेरि में लिप्त हो गया। माता जगदेश्वरी की तपस्या में संपूर्ण शक्ति की पूजा और शक्ति जीवन का आधार है।
शक्ति ही स्वतंत्रता है, शक्ति ही प्रकाश है। जब हमारे पास शक्ति ही नहीं होती तब हमारे पास अप्रकाश होता है, ग्रहण होता है। जीवन, अंधकार और प्रकाश का खेल होता है। सुर और असुर का संग्राम होता है। बन्धन और मुक्ति होती है।
प्रत्येक जीव शक्ति का अनन्त स्रोत
प्रत्येक जीव शक्ति का अनन्त स्रोत है सिर्फ आवरण से ही शक्तिहीन हो गया है, ग्रस्ति हो गया है, दास हो गया है। दासता ही जीवन का सबसे छोटा स्तर होता है। शक्ति नाम ही उसका मालिक होता है।
जड़ से चेतन की ओर
बन्धनों से स्वतंत्रता एक लंबा सफर ही तूफानी और मंथनीय यात्रा है। एक बाद एक चोटी, एक भौतिक यात्रा का आध्यात्मिक चेतना में मुक्ति, सीमित की अनन्त में मुक्ति, बाहरी निद्राओं से पूर्ण जागृति की ओर – मैटर से स्प्रिट की ओर (जड़ से चेतन की ओर)
श्री अरविंद की चेतना में छिपा है स्वतंत्रता का अर्थ
स्वतंत्रता क्या है- इसका पूर्ण स्वरूप श्री अरविंद की चेतना में ही पढ़ा और समझा जा सकता है। अगर इस दिन हम स्वतंत्रता के सही मतलब समझने की अगर आवश्यकता और प्रेरणा है तो इस दिव्य पुरुष से ही समझा जा सकता है।
आत्मविकास ही वास्तविक स्वतंत्रता
स्वतंत्रता है-विकास, विकास आत्मा का, सभी वस्तुओं में-जीवों में बैठा हुआ सर्व आत्मा, उस पर भौतिकीय आवरण और आत्मा में छिपा शक्ति का अंतर स्रोत। हमें आत्मा को पाना होगा- लेकिन इससे पहले हम आत्मा को पढ़ सकें- पा सकें- अहंकार-बुद्धि-मन की इंदियों को पार करना होगा। हर भौतिक, बौद्धिक- नैतिक – वैज्ञानिक रेखाओं को पार करना होगा।
श्री अरविंद स्वतंत्रताओं की साक्षात मूर्ति हैं- उनका पूरा जीवन स्वतंत्रता के यज्ञ के बाद एक राजनीतिक स्वतंत्रता को लेकर मुक्ति के उच्च शिखर तक है।
श्री अरविंद प्रकाश किरण में ही स्वतंत्रता का मूल्यांकन
यह भटका हुआ देश श्री अरविंद प्रकाश किरण में ही विश्राम की कल्पना कर सकता है। श्री अरविंद एक अनन्त कल्पना और स्वतंत्रता हैं, जितनी जल्दी हम उनकी शरण में आ सकें – हम स्वतंत्रता का मूल्यांकन कर सकेंगे।
आध्यात्मिक चेतना ही सर्वांगीण विकास
इस देश की मूल संस्कृति में ही इस देश का विश्राम स्थल है। देर-सबेर हमें वापस आना होगा- सारे भटकाव इस सत्य को ही बल देते हैं। श्री अरविंद की भारतीय संस्कृति उसकी आध्यात्मिक चेतना है- जो संपूर्ण विकास- सर्वांगीण विकास आधारित है। किसी खास एक हिस्से-वर्ग पर नहीं। किसी शोषण, वर्ग –भेद असमानता पर नहीं।
सृष्टि का प्रत्येक अणु स्वतंत्रता का अधिकारी
श्री अरविंद की स्वतंत्रता का अधिकारी सृष्टि में रहने वाला प्रति अणु अधिकारी है। हर बाहरी रूप से भौतिक का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन अंतरकरण में ईश्वर का स्वरूप होता है।
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