साहित्यकार, कवि एवं विचारक श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल का 25 अप्रैल-2022 को 87 वां जन्म दिवस है। गृहस्थ संत श्री दयाल के जीवन के बारे में जितना भी लिखा जाए कम है। लेकिन अभी हाल ही में आगरा की प्रसिद्ध साहित्यकार एवं विद्वान डा. मधु भारद्वाज की नवीनतम प्रकाशित पुस्तक आगरा की समृद्ध विरासत पुस्तक में श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल के जीवन संदर्भ पर एक लेख प्रकाशित हुआ है, जिसे हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं। साथ ही उनकी स्मृतियों को सहेजे हुए फोटो, कविता भी प्रकाशित कर रहे हैं।
श्री अरविंद दर्शन के महान दार्शनिक श्री विश्वेश्वर दयाल
आगरा। पृथ्वी पर कुछ ऐसी महान विभूतियां जन्म लेती हैं, जो किसी मो
मोह–माया और स्वार्थ के बिना निष्काम कर्म में लगे रहते हैं। इसे अपने जीवन में चरितार्थ कर दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे ही महापुरुष एवं योगी-संत श्रीविश्वेश्वर दयाल अग्रवाल रहे।
अमेरिका में हुआ आध्यात्मिक चेतना की दिव्यज्योति का जागरण
बहुमुखी प्रतिभा के धनी, आकर्षक व्यक्तित्व, सौम्य स्वाभाव और चेहरे पर झलकती दिव्यता से सभी श्रीविश्वेश्वर दयाल से सम्मोहित हो जाते थे। वह एक महान विचारक, साहित्यकार, कवि होने के साथ जीवन पर्यन्त श्रीअरविंद के सिद्धांतों पर चलते रहे। आगरा में बौहरे श्री रामसरन अग्रवाल (विधौलीवाले) एवं माता श्रीमती जशोदा देवी के घर 25 अप्रैल 1935 को जन्मे श्री विश्वेश्वर दयाल का विवाह दिल्ली निवासी श्री शकुंतला देवी के साथ हुआ। श्री दयाल अपनी शिक्षा अग्रवाल इंटर कालेज व सेंटजोंस कॉलेज से पूरी करने के बाद अमेरिका के कैलीफोर्निया स्थित स्थित वेस्टर्न यूनिवर्सिटी गए, जहां मास्टर डिग्री हासिल की और वहां लंबे समय तक पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया, जहां उन्हें आध्यात्मिक चेतना की दिव्यज्योति का जागरण हुआ, जिससे उनकी दिशा परिवर्तित हो गई और वह स्वदेश लौट आए।
पांच दशक तक लिखा विपुल साहित्य
अमेरिका से आने के पश्चात वह पूरी तरह से साहित्य सर्जन में जुट गए। पांच दशक तक अनवरत रूप से वह लेख, डायरी, मुक्तक, कविताएं, राष्ट्र भक्ति, श्रृंगार, व्यंग्य समेत सभी विषयों पर लिखा। इनका लिखा साहित्य कालजयी है, जो तात्कालिक समय की जरूरत थी और वर्तमान संदर्भ में और ज्यादा प्रासंगिक है। साहित्य को उन्होंने कभी धनोपार्जन का जरिया नहीं बनाया। वह प्रचार-प्रसार से कोसों दूर रहे। उन्होंने लेखन कार्य के साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाहन भी बखूबी किया और अपने व्यवसाय को बढ़ाया।
रजिस्टर्ड राजनीतिक दल का किया गठन
श्री दयाल तात्कालीनिक राजनीतिक व्यवस्था से बहुत ज्यादा खुश नहीं थे, उनके सपनों का भारत ऐसा नहीं था, जो उस समय वह महसूस कर रहे थे, वह कहते हैं– समाज और राष्ट्र चेतना के आधार पर ही उन्नति और पतन की ओर अग्रसर होते हैं, उन्होंने इस धारणा को अमल में लाने और विकास के लिए छोटे राज्यों के गठन पर जोर दिया। उन्होंने सबसे पहले ब्रज प्रदेश की मांग को उठाया। ब्रज प्रदेश निर्माण संघ के नाम से रजिस्टर्ड राजनीतिक दल का गठन भी किया, जिसके आजीवन संस्थापक अध्यक्ष रहे। लेकिन राजनीति से उनका मोह जल्द ही भंग हो गया और वह फिर साहित्य सृजन और आध्यात्मिक साधना में पूरी तरह से जुट गए। उन्होंने श्री अरविंद शिक्षण संस्थान का भी गठन किया और विद्यालय का संचालन किया।
सत्यदीप, आरोहण काव्य संग्रह, मेरा भारत ऑडियो एलबम का प्रकाशन
श्री विश्वेश्वर दयाल के दो काव्य संग्रह आरोहण और सत्यदीप का प्रकाशन हुआ है, जिसमें सत्यदीप कोलकाता की राजाराम लाइब्रेरी से संबद्ध है। श्री दयाल के राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत गीतों से सजी एक ऑडियो एलबम मेरा भारत भी जारी हुई है, जिसके गानों को कई स्थानों पर सराहा गया है। श्री दयाल के लेख, कविताएं, साहित्य, इंटरव्यू आदि समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं। श्री दयाल के निस्वार्थ कार्यों को देखते हुए नगर के बुद्धिजीवियों, सामाजिक, राजनीतिक, अधिवक्तासंगठन आदि ने उन्हें पदमविभूषण सम्मान से पुरस्कृत करने के लिए मुहिम भी चलाई थी। यह महान आत्मा ने २५ जनवरी की शाम को राष्ट्र के नाम संदेश लिखा। रात में नियमित तौर से आत्म लेखन किया। 26 जनवरी 2019 की प्रातः बेला में अपनी पार्थिव देह को त्याग कर दिव्यलोक में विराजमान हो गई।
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