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Shri Krishna Janmashtami: A wonderful festival of love and thirst for God

(श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल)

आगरा (arohanlive.com) । आत्मा भगवान के विभिन्न स्वरूपों को भजती और धारण करती है। इसमें श्री कृष्ण का नाम प्रधान है। ब्रह्म को भगवान श्री कृष्ण के नाम से पुकारा जाता है।

भगवान श्री कृष्ण का क्या स्वरूप है, यह कहना और लिखना तो मां सरस्वती भी नहीं कह पायीं- परन्तु हम अपनी सोच व होश में हर भगवान में स्वरूप और स्मरण कर सकते हैं। श्री कृष्ण चेतना और भावना का अपने जीवन में विकास कर सकते हैं।

16 कला अवतार 16 किरणों से भक्तों तक पहुंचते हैं

श्री कृष्ण 16 कला अवतार थे-भगवान महाविष्णु के। मानव इन विभिन्न कलाओं के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण का अमृतपान कर सकता है- ये कलाएं क्या हैं, मैं नहीं जानता, पूर्ण रीति से पर अपनी कल्प बुद्धि में यह समझ सकता हूं कि 16 मार्ग-दिशाएं या द्वार हैं, जिनके माध्यम से भगवान श्री कृष्ण अपने स्वरूपों को भक्तों के लिए प्रकट करते हैं, अपनी 16 किरणों से हम तक पहुंचते हैं, अपने व्यक्तित्व का परिचय देते हैं।

श्री कृष्ण का व्यक्तित्व अनन्त

श्री कृष्ण  का व्यक्तित्व अनन्त है, परन्तु 16 कलाओं के माध्यम से विभिन्न भक्तजन उनके स्वरूप, गुणों का रसों का पान कर सकते हैं- सभी द्वार जो मानव जीवन के लिए खुले हैं। मानव चलित है, कल्पना कर सकता है, संपूर्ण मानव व्यक्तित्व ग्रहण कर सकता है।

आसुरी शक्तियों के विनाश को लेते हैं जन्म

श्री कृष्ण का परिचय श्री भागवत और महाभारत के माध्यम से मिलता है- मानव तक उनका संदेश पहुंचता है। एक ओर भागवत में श्री कृष्ण आसुरी शक्तियों का विनाश करने के लिए कंस की बहिन देवकी के गर्भ माध्यम से गहन रात्रि में गंभीरतम दुख के समय जब मां पृथ्वी भी दुष्टों के भार को नहीं सकती- संसार चेतना भी हिल जाती है, एक गहनतम संकट होता है। ऐसे समय श्री कृष्ण आसुरी शक्तियों से निपटने के लिए जन्म लेते हैं- आसुरी शक्तियों का नाश करने के लिए।

गोकुल का हृदय हो जाता है आलोकित और अह्लादित

कंस की जेल में पैदा हुए श्री कृष्ण- माता जसोदा को अह्लादित करने के लिए पहुंच जाते हैं। नंद जसोदा और सारे गोकुल का हृदय आलोकित और अह्लादित करते हैं। सारे नर-नारियां, सखा-सहेलियां, सखियां, श्री राधा, माता, पिता सबको प्रेम से भरते हैं। जीवों को जगा देते हैं- सोया हुआ अंकुर बीज चल पड़ता है- एक नई दिशा के लिए, अपनी भूली हुई यात्रा पथ पर। हृदय पुकार उठता है। ईश्वर भी गतिशील हो जाता है। जीव-हृदय से, प्रेम से, भक्ति और प्रेम की वर्षा और उससे जीवों का विकास हृदय बिना जाने बंधन के लिए समर्पण कर देना चाहता है, लुट जाना जाता है- सर्वस्व देना चाहता है, उस ठगी पर- कुछ नहीं चाहता। मां जसोदा अपने लाल की बार-बार बल्लैया लेती हैं। अपनी आंखों से श्री कृष्ण को नहीं जाने देती हैं। श्री कृष्ण ही जीवन और प्राण हैं माता के, सखाओं को अपने सौंदर्य-कुशलता-वंशी से अनायास ही जीत लेते हैं- जहां कृष्ण हैं, सखा हैं, टोली हैं, बिना उनके कोई जीवन नहीं।  श्री कृष्ण के साथ ही दिन की चर्या और रात्रि में उस तत्व से सानिध्य की कामना।

श्री कृष्ण पर सबकुछ निछावर करना चाहती हैं गोपियां

ब्रजबाला के तो प्रियतम-सनम हैं, पत्नी भाव श्री कृष्ण के प्रति जीत लिया है, हृदय- सौंदर्य से, व्यक्तित्व से- सब कुछ निछावर कर देने के लिए तैयार रहती है। गोपियां श्री कृष्ण के द्वारा छेड़छाड़ को अपना सौभाग्य समझती हैं, अवसर की फिराक में रहती हैं, कुटिलता भी अपनाती हैं- श्री कृष्ण दर्शन के लिए।

भागवत के अमृत प्रेम के रसपान से तर जाने की चाहत

कैसा विलक्षण है यह प्रेम, जो अपने संपूर्ण व्यक्तित्वों को न्योछावर  कर देना चाहता है। कैसी है अद् भुत ईश्वर के लिए प्रेम और प्यास। भागवत अमृत-प्रेम का अपार रसपान है, जो जीव सदैव पीना चाहता है, इस अमृत के माध्यम से तर जाना चाहता है।

प्रेम का होता है आलौकिक स्वरूप

उद्धव संवाद- गोपियों और कृष्ण के अद् भुत संबंध को और गहनतम माध्यम से प्रकट करता है, जहां प्रेम से व्याकुल गोपियां श्री उद्धव  को आड़े हाथ लेती हैं- श्री उद्धव को अनुभव कराती हैं कि प्रेम का कैसा आलौकिक स्वरूप होता है।

बिना प्रेम के ज्ञान एक रेगिस्तानी सफर

बिना प्रेम के ज्ञान एक रेगिस्तानी सफर है-शुष्कता। श्री भागवत –प्रेमसागर है- अमृतधारा है, जिसे प्रेमी भरकर पीना चाहता है, ज्ञान की सीमा का कोई बंधन नहीं।

महाभारत में शौर्य– कर्तव्य-न्याय और कर्म का संदेश

दूसरी ओर महाभारत-कर्म – ज्ञान का आदेश और आस्था कराते हैं। लौकिक व्यवहार में अपने व्यवहार द्वारा मर्यादाओं को प्रतिष्ठित करते हैं। शौर्य– कर्तव्य, न्याय के लिए श्री अर्जुन को ललकारते हैं, ज्ञान का उपदेश देते हैं, युद्ध भूमि में ललकार करते हैं, शत्रुओं से संघर्ष के लिए, आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए, दुष्ट का वध करते हैं और कराते हैं। गीता का उपदेश देते हैं, भय रहित कर्म का ज्ञान, जीवन का पूर्ण ज्ञान अपने स्वरूप को दिखाते हैं- भक्त और ज्ञानी को। आलौकिक स्वरूप अवतार की प्रत्येक क्रिया व्यवहार में झलकती है, आलौकिक शक्ति के सूर्य हैं।

(श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल)

(साहित्यकार, कवि एवं विचारक श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल ने इस लेख को 2-8-1980 को अपनी डायरी में लिखा है। इस लेख में श्री कृष्ण और भक्त के बीच के आलौकिक प्रेम भक्ति की अनूठी परिभाषा गढ़ी है। साथ ही श्री दयाल इस लेख को लिखते समय भगवान में इतने लीन हो जाते हैं और आगे लिखते हैं- श्री कृष्ण में आपको अनन्त बार और प्रकार से प्रणाम करता हूं, आपको पुकारता हूं, प्रभु मेरी पुकार सुनो, दीन बंधु, करुणा सागर – मुझे उबारो… हे परमात्मा मैं आपके चरणों में पड़ा हूं मुझे मुक्त कर दो, भगवन मेरी भूख को वृति में बदल दो अपना  स्वरूप पूर्णरूप से उजागर करो। भगवान सारी दूरियों को समाप्त करो, हे परमात्मा आप मेरे लिए बह्रम हैं- Godhead  हैं। आप ही अंतिम देव हैं, मेरी पुकार सुनें।)    

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