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bair baraabar paap nahin…

आगरा(arohanlive.com) । किसी के प्रति बैर भाव रखना किसी पाप से कम नहीं है। श्री अरविंद दर्शन के महान विचारक, साहित्यकार, कवि एवं लेखक श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल ने बैर बराबर पाप नहीं अपनी रचना में बैर के दोष मित्रता के गुणों का बड़े ही प्रभावी तरीके से वर्णन किया है।

बैर बराबर पाप नहीं…

(श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल)

बैर भाव एक रोग है,

यह अशांति का बीज,

तन-मन, सब जरै,

जर जाय पूरो शरीर।

बैर बराबर पाप नहीं,

मित्रता बराबर पुन्य,

जाके हृदय प्रेम रस,

परम शांति घर आय।

जगत राम दोनों मिलें,

जीवन सफल हो जाय,

या जग में बस राम हैं,

न दूजा भई कोई।

न चला तू चाकी बैर की,

नरक सामने आये,

मानव देह तिल-तिल जरै,

सपने हूं कोहि ना सुख पाय।

बैर भाव एक गतिरोध है,

जाकि उल्टी चाल,

राम ना मिले ना मार्ग,

जन्म व्यर्थ हो जाय।

बैर बराबर पाप नहीं,

मित्रता बराबर शांति…

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