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Empowerment of womanhood is possible only when all of humanity is empowered by this balance

आगरा (arohanlive .com)। सशक्त नारी ही समाज का कल्याण कर सकती है। भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति की भूमिका सर्वोच्च है। नारी सुलभता या स्त्रीत्व का सशक्तिकरण तभी हो सकता है, जब सारी मानवता इस संतुलन से सशक्त हो जाए। यही समय है कि एक ऐसा मनोवैज्ञानिक व आध्यात्मिक वातावरण भी तैयार किया जाए, जहां महिला व पुरुष समान पैमानों पर उतर सकें।
श्री अरविंद शिक्षण संस्थान और श्री अरविंद सोसायटी द्वारा भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति की भूमिका पर सेमिनार
यह कहना था सामाजिक एवं न्याय मंत्रालय के अपर सचिव आईएएस अमित कुमार घोष का। श्री अरविंद शिक्षण संस्थान, श्री अरविंद सोसाइटी और डॉ. भीमराव आंबेडकर विवि (महिला प्रकोष्ठ) की ओर से जेपी सभागार में भारतीय नारी शक्ति की भूमिका विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने हर किसी का मन मोह लिया। नारी शक्ति पर कविता पाठ भी आयोजित किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि अपर सचिव आईएएस अमित कुमार घोष ने किया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में कुलपति प्रो. आशुरानी उपस्थित रहीं।
स्त्री ही सृजन की शक्तिः अपर्णा रॉय

विशिष्ट वक्ता एवं श्री अरविंद आश्रम दिल्ली की डॉ अपर्णा राय ने समाज में नारी शक्ति की भूमिका पर अपने विचार रखते हुए कहा कि स्त्री को सृजन की शक्ति माना जाता है अर्थात स्त्री से ही मानव जाति का अस्तित्व माना गया है। इस सृजन की शक्ति को विकसित-परिष्कृति कर उसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, विचार, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, अवसर की समानता का सु-अवसर प्रदान करना ही नारी सशक्तिकरण का आशय है।
संस्कृति मत्रालय में अंडर सेक्रेटरी बी आशा नायर ने कहा कि भारतीय संस्कृति में तो स्त्री ही सृष्टि की समग्र अधिष्ठात्री है।
नारी शक्ति का महत्व समझाया

नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली जानी मानी शुभा मूर्ति ने भी नारी शक्ति को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने सावित्री बाई फुले का उदाहरण देकर बच्चों को भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति का महत्व समझाया।
महर्षि अरविंद से प्रेरणा लेने की जरूरत
कुलपति प्रो. आशुरानी ने महर्षि अरविंदो घोष के जीवन से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि अरविंद जी के जीवन में शिक्षा का महत्व रहा। उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड गए। उन्होंने शिक्षा को अपनी ताकत बनाया। भारत में लौटने के बाद महर्षि अरिवंद आजादी के आंदोलन में उतरे और कई क्रांतिकारी आंदोलन में उनका नाम जुड़ा। अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया लेकिन जेल में भी अरविंद जी ने शिक्षा को प्रमुखता से चुना और यहां से उनका जीवन ही बदल गयाऔर बाद में वे अध्यात्म की ओर मुड़ गए। उन्होंने जेल की कोठी में ज्यादा से ज्यादा समय साधना, शिक्षा और तप में लगाया।
साहित्यकार विश्वेश्वर के गीतों से गूंजा सभागार

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