आगरा(arohanlive.com) ।
मनुष्य के प्रबुद्ध विचारों में उसकी सबसे पहली तल्लीनता, जो उसको चरम और अनिवार्य तल्लीनता भी मालूम होती है, क्योंकि वह संदेहवाद की लम्बी से लम्बी अविधियों के बाद, हर निष्कासन के बाद भी बनी रहती है, वहीं, जहां तक उसके विचारों की उड़ान है, उसको उच्चतम तल्लीनता भी मालूम होती है। वह अपने-आपको परम देव के पूर्वाभास में, पूर्णता के लिए आवेश में, शुद्ध सत्य और अमिश्रित आनन्द की खोज में, गुप्त अमरता के भाव में प्रकट करती है।
मानव ज्ञान की प्राचीन उषाएं इस सतत् अभीप्सा के बारे में अपनी साक्षी छोड़ गई हैं। आज हम ऐसी मानव जाति को देखते हैं, जो प्रकृति के बाह्य रूप के विजयी विश्लेषण से अघा तो गई है पर संतुष्ट नहीं है। वह अपनी आदिम ललकों की ओर लौटने की तैयारी कर रही है।
प्रज्ञा का आदि सूत्र ही अन्तिम सूर्य होने की प्रतिज्ञा करता है—भगवान् , प्रकाश, स्वाधीनता और अमरता। – श्री अरविंद
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