आगरा (arohanlive.com) । सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय, सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए।
अर्थात पृथ्वी के सभी कागज, जंगल की सभी कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते। गुरु हमारे जीवन में हमारा उचित मार्गदर्शन करते हैं और हमें सही राह पर ले जाते हैं। हमारे जीवन में शिक्षा का प्रकाश लाने वाले हमारे गुरुओं के पास हमारे जीवन की असंख्य परेशानियों का हल होता है। गुरु पूर्णिमा पर्व पर ऐसे ही सद्गुरु, साहित्यकार, कवि एवं विचारक रहे श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल ने अपने गुरु श्रीअरविंद की आराधना की है अपने भजन – सद् गुरु ब्रह्म में।
(श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल)
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