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Amrit Vani : Srivisheshwar Dayal Aggarwal

अमृत वाणी

 

– श्रीविश्‍वेश्‍वर दयाल अग्रवाल 
1
सत्य-धर्म चमको भारत में
अधर्म-कपट के अंध मिटाओ।
शीत मिटाओ निराशा-कुंठा के
धरा पर शांति लाओ।
2
शक्ति-भक्ति चमको भारत में 
दुर्बलता, अविश्वास के अंध मिटाओ
सिंह बनाओ भारत जाति को
विश्व में आगे लाओ।।
3
ये जमीं है मन्दिर
मां अम्बे के दिल का टुकड़ा है।
दिल धड़कता है इसके अन्दर
आस्मां को छूने की ताकत है।
सीता-राधा-भारती नाम हैं इसके
सौ करोड़ों की माता है।

                                                                4

कोमल वाणी मधु का प्याला,

पीया जिसने खूब सराहा
मृदुल स्वाभाव वट की छाया,

बैठा उसने सुख पाया।
5

शब्द सजीव होते हैं,

बड़े चमत्कारी होते हैं
शक्ति के तीर होते हैं,

यह दिव्य बीज होते हैं।
6
साकारात्मक जीवन चिंतन
मिलन धरती-आकाशा।
योग जीवात्मा-परमात्मा

 संसार बन्धन मुक्ति

7
ना कर शक्ति का दुरुपयोग,

ना धन का दंभ भर
ना ललकार सत्य को,

ना अधिकारों का उपहास कर।

8
निष्काम पथ चल तू मानव
कर्मों को प्रभु अर्पण करता चल
भजन कर तू कर्मों से
निष्काम डगर चलता चल।
यज्ञ कर तू कर्म योग का
कामना बीज नष्ट करा चल
आस न कर तू भोगों की
अपने पथ पर चलता चल।
9
मानव खान गुन-अवगुन की,

जैसा खोदै, वैसा ही पावै
मानव घर है देव-असुर का,

जाये पुकारौ, बाहिर आवै।
10
साधना दही बिलोवन अमृत की,

यह मंथना परम जीवन की
यह क्रिया आरोहण रूपान्तर की,

यह यज्ञ कण-कण की शुद्धि का।
11
आत्मा गगन स्वरूप है, आत्मा अखंड अनन्त
आत्मा आदि अनादि है, येहि सम्पूर्ण सत्य।
आत्मा पूर्ण स्वतंत्र है, यह सृष्टि के पास,
आत्मा सर्वव्यापी तत्व है, काल यहां का दास।

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