आगरा (arohanlive.com) । ग्रीष्म ऋतु है। चिलचिलाती धूप में धरा भी उदास है। धरा की बेचैनी को शब्दों में पिरोकर शीतलता का अहसास कराया है कवि, साहित्यकार और विचारक रहे श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल ने अपनी रचना धरा भई उदियासी में।
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