आगरा (arohanlive.com) । ताजनगरी के सुप्रसिद्ध उद्योग समूह एनआरएल ग्रुप द्वारा विगत 12 वर्षों से निर्माणाधीन दक्षिण भारतीय शैली पर आधारित वरद वल्लभा गणपति मंदिर का तीन दिवसीय प्रतिमा स्थापना एवं प्राण प्रतिष्ठा समारोह बुधवार को छलेसर-फिरोजाबाद रोड पर बेस्ट प्राइस के समीप स्थित मंदिर परिसर में विधि-विधान और धूमधाम से शुरू हुआ।
दक्षिण भारतीय शैली पर आधारित मंदिर के लिए यज्ञशाला में दक्षिण भारतीय पंडित और यज्ञाचार्य ही करा रहे हवन-पूजन
कांचीपुरम के विद्वान पंडित शबरी राजन के नेतृत्व में आठ पंडितों की टीम ने जहाँ प्राण प्रतिष्ठा के लिए विशेष पूजन पद्धतियों का शुभारंभ किया, वहीं पंच कुंडीय यज्ञशाला में कांचीपुरम के यज्ञाचार्य भरनीधरन आर. ने सुबह वास्तु हवन और शाम की बेला में जया हवन करवाया। इस दौरान दोपहर को शयनादिवासम के अंतर्गत भगवान की प्रतिमा को धान्य की शैया पर एक दिन के लिए शयन कराया गया।
कलश यात्रा ने मन मोहा
शाम को बैंड बाजों की मधुर सुर लहरियों संग 121 कलशों को सिर पर धारण कर मंदिर परिसर और आसपास मंगल कलश यात्रा निकाली गई। मंदिर की परिक्रमा करके यज्ञशाला में कलशों का पूजन किया गया। पूजन के बाद हवन में पूर्णाहुति देकर कलशों की स्थापना की गई।
ये रहे प्रमुख रूप से मौजूद..
समारोह में एनआरएल ग्रुप के हरि मोहन गर्ग, श्रीमती साधना गर्ग, यतेंद्र कुमार गर्ग, श्रीमती जानकी गर्ग, श्रीमती सुनीता गर्ग, रोहित गर्ग, रिद्धि गर्ग, सिद्धांत गर्ग, अदिति गर्ग, नीरज गर्ग, मेघा गर्ग, रौनक, सृष्ठी, दीपक गर्ग, दिव्यांशी गर्ग, वरदान, इनाया, मायरा, वान्या हर्षवर्धन, समाजसेवी मुकेश नेचुरल और मीडिया समन्वयक कुमार ललित प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
पद्मश्री मूर्तिकार पेरूमल सत्पति आज खोलेंगे भगवान के नेत्र
आयोजक श्री हरि मोहन गर्ग ने बताया कि चेन्नई के सुप्रसिद्ध मूर्तिकार पद्मश्री पेरूमल सत्पति ने ब्लू ग्रेनाइट के एक पत्थर को तराश कर एक वर्ष में भगवान गणपति की प्रतिमा को आकार दिया है। 4 फुट ऊँची प्रतिमा का वजन 3 टन है। बुधवार को सुबह 10 बजे मंदिर के शिखर पर कलश स्थापना के साथ-साथ भगवान की प्रतिमा के नेत्र स्वयं मूर्तिकार पेरूमल सत्पति ही खोलेंगे।
लुभा रहा अष्टकोणीय डिजाइन
रोहित गर्ग और सिद्धांत गर्ग ने बताया कि दक्षिण भारतीय शैली पर आधारित इस मंदिर का डिजाइन अष्टकोणीय है जो सबको लुभा रहा है। हालांकि इसे 5 कोणीय बनाने की योजना थी। नक्शा भी उसी के अनुरूप था पर बनाते बनाते ईश्वर की क्या लीला हुई कि मिस्त्री से यह मंदिर स्वयं ही अष्टकोणीय बन गया।
पीला पत्थर है खास..
मंदिर निर्माण की कारीगरी में प्रयुक्त हस्त कला और हस्तशिल्प के साथ जैसलमेर की विशेष आभा लिए पीले पत्थर ने मंदिर की खूबसूरती में चार चाँद लगा दिए हैं। देर रात तक मंदिर के दर्शन कर भक्त स्वयं को धन्य करते रहे।
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