आगरा, arohanlive.com। देश वर्तमान में कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है। जिंदगी के मायने बदल गए हैं। हर शख्स अपनी और अपनों की जिंदगी बचाने को जूझ रहा है। जिंदगी को लेकर साहित्यकार एवं कवि श्री विश्वेश्वर दयाल की दशकों पहले लिखी रचना आज के हालात पर सटीक बैठ रही
श्री विश्वेश्वर दयाल
कैसा सिला है जिंदगी
कैसा सिला जिंदगी
ना जिसका कोई विराम है
दौड़ें बहुत चाहत की
पर रुखसत ही अंजाम है।
मेले हैं यहां बहुत
पर जिंदगी वीरान है
बहलाव का पूरा सामान है
ढेर से अरमान हैं।
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