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कैसा सिला है जिंदगी…

कैसा सिला है जिंदगी…

आगरा, arohanlive.com। देश वर्तमान में कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है। जिंदगी के मायने बदल गए हैं। हर शख्स अपनी और अपनों की जिंदगी बचाने को जूझ रहा है। जिंदगी को लेकर साहित्यकार एवं कवि श्री विश्वेश्वर दयाल की दशकों पहले लिखी रचना आज के हालात पर सटीक बैठ रही

श्री विश्वेश्वर दयाल

 

कैसा सिला है जिंदगी

कैसा सिला जिंदगी

ना जिसका कोई विराम है

दौड़ें बहुत चाहत की

पर रुखसत ही अंजाम है।

मेले हैं यहां बहुत

पर जिंदगी वीरान है

बहलाव का पूरा सामान है

ढेर से अरमान हैं।

 

डेरा है मौत का हर पल

हर जगह श्मशान है

कैसा है अजीब यह सफर

न जिसका कोई मुकाम है।

कश्मकश बेहद अरमाने जिंदगी

कहने को बहुत कुछ है

पाने के लिए कुछ नहीं

जिंदगी बस कोहराम है।

खंजर हैं यहां बहुत नफरत के

प्यार का कोई हौसला नहीं

भटकाने को बहुत कुछ यहां

पाने को बहुत कुछ नहीं।

कैसा सिला है जिंदगी…

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