आगरा (arohanlive.com) साहित्यकार, कवि एवं विचारक रहे श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल ने हर विधा पर लिखा है। कविताएं भी संदेश देने वाली हैं। बुधवार को गंगा जन्मोत्सव था। ऐसे मौके पर उनकी एक कविता उतरो मां गंगे भी है, जिसमें उन्होंने तत्कालीन स्थितियों को देखते हुए मां से फिर अपने पुराने स्वरूप में पृथ्वी पर उतरने का आह्वान करते हुए पृथ्वी के सभी कष्टों को हरने और कण-कण पूर्ण बनाने का आह्वान किया है।
उतरो मां गंगे
(श्री विश्वेश्वर दयाल अग्रवाल)
उतरो मां गंगे,
जन्म-जन्म के पाप-पुंज मिटावौ,
तृप्त करो देव-पितरों को,
तन-मन को शुद्ध बनावौ।
पतित पाविनी उतरो घट,
प्यासे की प्यास बुझावौ,
शान्ति लावो तपते जीवन में,
माता ब्रह्मलीन बनावौ।
पद पंकज धरौ मातृ,
अपना दिव्य स्वरूप दिखावौ,
पर्दा उठाओ माता मुख से तनिक,
अपने सुत की प्यास मिटावौ।
परिवर्तन लावो जीवन में,
कण-कण को पूर्ण बनावौ,
सेतु बनओ अवरोधो पै,
माया सागर पार करावौ।
जड़ता-तिमर मिटावौ सब कौनों के,
ज्ञान-भक्ति की दीवाली लावौ,
पवित्र करो तन-मन जीवन को,
श्री गुरु गोविन्द कौ प्रिय पुत्र बनावौ।
पूर्ण करावौ यज्ञ मां गंगे,
अपने सुत की लाज बचावौ,
उतरो मां गंगे घट,
कारी बदरी बाहिर लावौ।
जागृत करो ज्ञान-विज्ञान को,
जग में अपनी कीर्ति बढ़ावौ,
नाता जोड़ो स्वामी से,
आत्माराम में प्रवेश करावौ।
पूरे करावौ सब लेन-देन,
सगरे ऋणों से मुक्त करावौ,
विनती सुनो दयाल की मां गंगे,
अब ना देर लगावौ।।
उतरो मां गंगे घट…
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